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Wednesday, April 1, 2015

विजयी लोग - पाब्‍लो नेरूदा की कविता


मैं दिल से इस संघर्ष के साथ हूँ
मेरे लोग जीतेंगे
एक-एक कर सारे लोग जीतेंगे


इन दु:खों को
रूमाल की तरह तब-तक निचोड़ा जाता रहेगा
जब-तक कि सारे आँसू
रेत के गलियारों पर
कब्रों पर
मनुष्‍य की शहादत की सीढ़ियों पर
गिर कर सूख नहीं जाएँ
पर, विजय का क्षण नज़दीक है
इसीलिए घृणा को अपना काम करने दो
ताकि दण्‍ड देने वाले हाथ
काँपें नहीं
समय के हाथ को अपने लक्ष्‍य तक
पहुँचने दो अपनी पूरी गति में
और लोगों को भरने दो ये खाली सड़कें
नये सुनिश्चित आयामों के साथ

यही है मेरी चाहत इस समय के लिए
तुम्‍हें पता चल जायेगा इसका
मेरा कोई और एजेण्‍डा नहीं है

- पाब्‍लो नेरूदा
-अनुवाद - रामकृष्‍ण पाण्‍डेय
(परिकल्‍पना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित संकलन 'जब मैं जड़ों के बीच रहता हूँ' से साभार)

जीना - नाज़िम हिकमत की कविता

जीना कोई हँसी-मजाक की चीज़ नहीं,
तुम्‍हें इसे संजीदगी से लेना चाहिए।
इतना अधिक और इस हद तक
कि, जैसे मिसाल के तौर पर, जब तुम्‍हारे हाथ बँधे हों
तुम्‍हारी पीठ के पीछे,
और तुम्‍हारी पीठ लगी हो दीवार से
या फिर, प्रयोगशाला में अपना सफेद कोट पहने
और सुरक्षा-चश्‍मा लगाये हुए भी,
तुम लोगों के लिए मर सकते हो --
यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिनके चेहरे
तुमने कभी देखे न हों,


हालाँकि तुम जानते हो कि जीना ही
सबसे वा‍स्‍तविक, सबसे सुन्‍दर चीज है।
मेरा मतलब है, तुम्‍हें जीने को इतनी
गम्‍भीरता से लेना चाहिए
कि जैसे, मिसाल के तौर पर, सत्‍तर की उम्र में भी
तुम जैतून के पौधे लगाओ -- 
और ऐसा भी नहीं कि अपने बच्‍चों के लिए,
लेकिन इसलिए, हालाँकि तुम मौत से डरते हो
तुम विश्‍वास नहीं करते इस बात का,
इसलिए जीना, मेरा मतलब है, ज्‍यादा कठिन होता है।

- नाज़िम हिकमत