रुके न जो, झुके न जो, दबे न जो,मिटे न जो
हम वो इंक़लाब हैं,ज़ुल्म का जवाब हैं
हर शहीद का,गरीब का हमीं तो ख़्वाब हैं।
तख़्त और ताज को, कल के लिए आज को
जिसमें ऊंच-नीच है ऐसे हर समाज को
हम बदल के ही रहेंगे वक़्त के मिजाज़ को
क्रांति कि मांग है, जंगलों में आग है
दासता की बेड़ियों को तोड़ते बढ़ जायेंगे .
लड़ रहे हैं इसलिए की प्यार जग में जी सके
आदमी का खून कोई आदमी न पी सके
मालिकों- मजूर के,
नौकरों हुजूर के
भेद हम मिटायेंगे, समानता को लायेंगे.
जानते नहीं हैं फ़र्क हिन्दू-मुसलमान का
मानते हैं रिश्ता इंसान से इंसान का
धर्म के देश के, भाषा के भेष के
फ़र्क को मिटायेंगे, समानता को लायेंगे
हुक्म चल सकेगा नहीं ज़ुल्मी हुक्मरान का
सारे जग पे हक हमारा, हम पे इस जहाँ का
गरीब को जगायेंगे, गरीबी को मिटायेंगे
एकता के जोर पे हर ज़ुल्म से लड़ जायेंगे.
रुके न जो, झुके न जो, दबे न जो, मिटे न जो
हम वो इंक़लाब हैं,ज़ुल्म का जवाब हैं
हर शहीद का,गरीब का हमीं तो ख़्वाब हैं।
--छात्र युवा संघर्ष वाहिनी