सर्वशक्तिमान,सर्वज्ञानी, सर्वत्र परमपिता परमेश्वर
जिनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता,
उनकी सत्ता में यकीन रखने वाले मेरे धार्मिक मित्रों!
मेरी तरफ़ से अपने परमपिता से कुछ सवाल करोगे क्या?
मुझे तो अधर्मी, काफ़िर होने के संगीन जुर्म में
बिना सुनवाई के, हिटलरशहाना अंदाज़ में
नरक के कंसन्ट्रेशन कैम्प में भेज दिया जायेगा.
इसलिए जब कभी तुम्हे अपने परमपिता के
दुर्लभ दर्शन होने का सौभाग्य प्राप्त हो,
या फिर जब तुम्हे आलीशान स्वर्ग की ओर ले जाया जा रहा हो,
उस समय मेरी तरफ़ से कुछ सवाल करोगे क्या?
उनसे पूछना कि जब हीरोशिमा और नागासाकी पर
शैतान अमेरिका गिरा रहा था परमाणु बम,
तो मानवता का कलेजा तो हो गया था छलनी छलनी ,
लेकिन महाशय के कानों में क्यों नहीं रेंगी जूँ तक?
फिर उनसे पूछना कि जब दिल्ली की सड़कों पर
कोंग्रेसी राक्षस मासूम सिखों का कर रहे थे कत्लेआम,
तब यह धरती तो काँप उठी थी
लेकिन बैकुंठ में क्यों नहीं हुई ज़रा सी भी हलचल?
उनसे यह भी पूछना कि जब गुजरात में
संघ परिवार के ख़ूनी दरिंदों द्वारा
मुस्लिम महिलाओं का हो रहा था सामूहिक बलात्कार,
तब इंसानियत तो हो गयी थी शर्मसार
पर जनाब के रूह में क्यों नहीं हुई थोड़ी भी हरकत?
और यह भी कि बरखुरदार किस करवट सो रहे होते हैं
जब उनके मंदिर के नाम पर गिराई जाती है मस्जिद,
जब ज़िहाद के नाम पर क़त्ल किये जा रहे होते हैं निर्दोष नागरिक?
आख़िर मालिक क्यों नहीं होते टस से मस?
जब मुनाफ़े कि वहशियाना हवस को मिटाने कि ख़ातिर
मिल मालिक जोंक कि तरह चूस रहे होते हैं मज़दूरों का खून.
योर ऑनर किस जुर्म कि सज़ा देते हैं
भूकंप और सूनामी पीड़ितों को?
पूछने को तो और भी बहुत कुछ है,
जैसे कि वियतनाम,फिलिस्तीन,अफगानिस्तान, इराक और अब पकिस्तान..
लेकिन मुझे लगता नहीं कि तुम कर पाओगे इतना साहस
आखिर तुम्हे अपने स्वर्ग और मोक्ष की परवाह है,
भले ही इस दुनिया में लोग जी रहे हों नरक से भी बदतर ज़िन्दगी
इससे तुम्हे क्या फ़र्क पड़ता है कि इस दुनिया में है इतनी अशांति
तुम्हे तो बस अपनी मानसिक शांति कि फ़िक्र है.
आख़िर तुम हो तो इसी व्यवस्था की उपज
जहाँ लोगों के दिमाग में ठूसा जाता है बस अपने लिए जीना
लेकिन मैं भी तो हूँ इसी व्यवस्था की उपज
मैं खुले आम करता हूँ विद्रोह
न सिर्फ इहलोक की ज़ालिम सत्ता के ख़िलाफ़
बल्कि परलोक की अमानवीय सत्ता के भी ख़िलाफ़.
क्योंकि अब हो चला है मुझे यक़ीन
कि हर तरह के अन्याय के ख़िलाफ़
विद्रोह न्यायसंगत और मानवीय है!
- आनन्द सिंह
उनकी सत्ता में यकीन रखने वाले मेरे धार्मिक मित्रों!
मेरी तरफ़ से अपने परमपिता से कुछ सवाल करोगे क्या?
मुझे तो अधर्मी, काफ़िर होने के संगीन जुर्म में
बिना सुनवाई के, हिटलरशहाना अंदाज़ में
नरक के कंसन्ट्रेशन कैम्प में भेज दिया जायेगा.
इसलिए जब कभी तुम्हे अपने परमपिता के
दुर्लभ दर्शन होने का सौभाग्य प्राप्त हो,
या फिर जब तुम्हे आलीशान स्वर्ग की ओर ले जाया जा रहा हो,
उस समय मेरी तरफ़ से कुछ सवाल करोगे क्या?
उनसे पूछना कि जब हीरोशिमा और नागासाकी पर
शैतान अमेरिका गिरा रहा था परमाणु बम,
तो मानवता का कलेजा तो हो गया था छलनी छलनी ,
लेकिन महाशय के कानों में क्यों नहीं रेंगी जूँ तक?
फिर उनसे पूछना कि जब दिल्ली की सड़कों पर
कोंग्रेसी राक्षस मासूम सिखों का कर रहे थे कत्लेआम,
तब यह धरती तो काँप उठी थी
लेकिन बैकुंठ में क्यों नहीं हुई ज़रा सी भी हलचल?
उनसे यह भी पूछना कि जब गुजरात में
संघ परिवार के ख़ूनी दरिंदों द्वारा
मुस्लिम महिलाओं का हो रहा था सामूहिक बलात्कार,
तब इंसानियत तो हो गयी थी शर्मसार
पर जनाब के रूह में क्यों नहीं हुई थोड़ी भी हरकत?
और यह भी कि बरखुरदार किस करवट सो रहे होते हैं
जब उनके मंदिर के नाम पर गिराई जाती है मस्जिद,
जब ज़िहाद के नाम पर क़त्ल किये जा रहे होते हैं निर्दोष नागरिक?
आख़िर मालिक क्यों नहीं होते टस से मस?
जब मुनाफ़े कि वहशियाना हवस को मिटाने कि ख़ातिर
मिल मालिक जोंक कि तरह चूस रहे होते हैं मज़दूरों का खून.
योर ऑनर किस जुर्म कि सज़ा देते हैं
भूकंप और सूनामी पीड़ितों को?
पूछने को तो और भी बहुत कुछ है,
जैसे कि वियतनाम,फिलिस्तीन,अफगानिस्तान, इराक और अब पकिस्तान..
लेकिन मुझे लगता नहीं कि तुम कर पाओगे इतना साहस
आखिर तुम्हे अपने स्वर्ग और मोक्ष की परवाह है,
भले ही इस दुनिया में लोग जी रहे हों नरक से भी बदतर ज़िन्दगी
इससे तुम्हे क्या फ़र्क पड़ता है कि इस दुनिया में है इतनी अशांति
तुम्हे तो बस अपनी मानसिक शांति कि फ़िक्र है.
आख़िर तुम हो तो इसी व्यवस्था की उपज
जहाँ लोगों के दिमाग में ठूसा जाता है बस अपने लिए जीना
लेकिन मैं भी तो हूँ इसी व्यवस्था की उपज
मैं खुले आम करता हूँ विद्रोह
न सिर्फ इहलोक की ज़ालिम सत्ता के ख़िलाफ़
बल्कि परलोक की अमानवीय सत्ता के भी ख़िलाफ़.
क्योंकि अब हो चला है मुझे यक़ीन
कि हर तरह के अन्याय के ख़िलाफ़
विद्रोह न्यायसंगत और मानवीय है!
- आनन्द सिंह
17 comments:
सवाल अच्छे हैं परन्तु बहुसंख्यक विरोध की भावना से प्रेरित लगते है.तदैव विचार प्रधान रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं.
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
बहुत अच्छा प्रयास है , बधाई
सेंटिंग मे जाकर शब्दपुष्टीकरण हटा देवे,टिप्पणी देने मे सुविधा होती है
हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है।
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की शुभकामनाएं।
सार्थक लेखन के लिये आभार एवं "उम्र कैदी" की ओर से शुभकामनाएँ।
जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बना जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।
आपका शुभचिन्तक
"उम्र कैदी"
अपने मारकस से ही पुछ लेते?
बहुत अच्छा प्रयास है , बधाई
सबके अपने अपने ईश्वर है..आप शायद मार्क्स, लेनिन पर श्रद्धा रखते हैं..
बहुत अच्छा प्रयास है|
@GANGA DHAR SHARMA
गंगाधर जी, मेरे अन्दर बहुसंख्यक विरोध जैसी कोई भावना तो नहीं है, हाँ मैं बहुसंख्यावाद(majoritarianism) विरोधी अवश्य हूँ.
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@ पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
शर्मा जी लगता है आपकी धार्मिक भावनाएं आहत हो गयी हैं. मेरा मकसद यह हरगिज़ नहीं था.मैं तो अपने आस्तिक मित्रों से चंद ऐसे सवाल करना चाहता था जो मेरी समझ में नहीं आते.
रही बात ईश्वर कि तो मैं मार्क्स और लेनिन को ईश्वर नहीं मानता; उनकी तस्वीर पर अगरबत्ती नहीं जलाता; उनको सर्वशक्तिमान, सर्वत्र और सर्वज्ञानी नहीं समझता;उनको सृष्टि का रचयिता भी नहीं मानता; उनको मानवीय कमजोरियों और गलतियों से परे भी नहीं मानता.
मैं तो बस उनको बेहतर इंसानों के दर्जे में रखता हूँ. उनकी जिंदगी और विचारों से प्रेरणा लेकर एक अच्छा इंसान बनने और एक बेहतर दुनिया बनाने के संघर्ष में प्रयासरत हूँ और इसके लिए किसी ईश्वर पर निर्भरता ज़रूरी नहीं है.
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बाकी सभी मित्रों को प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद!
Very interesting poem. I firmly believe in God but I too often ask these questions when I am working survivors of disasters, communal riots and armed conflicts...
कौन सा भगवान् है,
जो खुश होता है यूँ?
अगर दिल दुखता है उसका,
तो खुदा चुप रहता है क्यूँ?
Maybe some day we will find answers to these very important questions...
All the best in your quest!
इस लिंक पर मैने जबाब देने की कोशिश की है .. आकर देखिए !!
भाई साहेब, शुरुआत के लिए बहुत बधाई. लेकिन आपने समस्या तो गिनवा दीं... पर समाधान भी तो प्रस्तुत करिए... कांग्रेस और संघ परिवार पर तीर चला दिया सीधे. बंधू ये जो भी प्रतिक्रियात्मक घटनाएँ आपने गिनवाई हैं दरअसल वो खुद मैं कोई समस्या नहीं हैं. वरन सिर्फ मुखौटे हैं . वास्तविक जड़ें तो कहीं और ही हैं और उसका दोषी सारा समाज है. और समाज के अंग होने के नाते आप भी दोषी हैं. इश्वर कुछ नहीं करता. उसने हमको कर्म करने कि आज़ादी दे रखी है. हम जैसा बोएँगे वैसा ही तो फल मिलेगा भाई. तो जितने भी बीज मानव जाती ने बोये तो उसका फल भी मानव को ही तो भोगना होगा.....
आप के लिए एक सलाह:- सामाजिक समस्या को रेखांकित करिए साथ ही साथ आपकी नज़र मैं उसका क्या समाधान होना चाहिए वो भी दो रखिये.... शायद आपका वही विचार किसी क्रांति को जन्म दे जाये.
शुभकामनाएं,
मनुदीप
संगीता जी,
मेरे सवालों को पढने के लिए और उनके जवाब देने के प्रयास के लिए धन्यवाद!
वैसे मैंने तो ये सवाल सर्वशक्तिमान परमेश्वर से पूछने की गुजारिश की थी, चलिए अच्छा ही हुआ की आपने ख़ुद ही इनका जवाब दे दिया.लेकिन जैसा कि आपको अंदेशा था, आपके जवाब मेरे बेचैन, जिज्ञासु और तूफ़ानी मन को संतुष्ट करने में असफल रहे, उल्टे मेरा मन पहले से भी उद्वेलित हो उठा. मेरे जिज्ञासु मन को सिर्फ वही बातें संतुष्ट कर पाती हैं जिनके पीछे वैज्ञानिक आधार हो. हालांकि आपने ईश्वर को प्रकृति से जोड़कर अपनी बातों में वैज्ञानिकता का पुट भरने की कोशिश की है, परन्तु विज्ञान का छात्र होने के नाते मुझे विज्ञान और आस्था दोनों परस्पर विरोधी विचार लगते हैं. जैसा कि आपने सही लिखा है की विज्ञान मानव द्वारा प्रकृति के नियमों की की खोज का एक निरंतर प्रयास है,लेकिन मेरी जानकारी में ईश्वर की अवधारणा को पुष्ट करने का वैज्ञानिक प्रयोग आज तक नहीं हो पाया है.
आपने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था और अपने ईश्वर के बचाव में जो तर्क दिए हैं वो एक ओर तो मुझे विसंगतियों से भरे लगते हैं, वहीँ दूसरी ओर उनकी तार्किक परिणति हमें एक ख़तरनाक दिशा में में ले जाती है. आपने पिता और पुत्र का तथा पेट्रोल पम्प का जो उदहारण दिया है उससे तो यही लगता है की आप मानती हैं कि इस दुनिया में भीषण युद्ध, ईश्वर के नाम पर दंगे-फसाद व आतंकवाद, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, महिला उत्पीड़न, वेश्यावृति इत्यादि ईश्वर की मर्ज़ी से होता है और इन परिघटनाओं के माध्यम से ईश्वर इंसानों को सबक सिखाता है.अगर ऐसा है तो मेरे जैसे इंसाफपसंद युवा निश्चित रूप से ईश्वर की इस नाइंसाफ सत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायेंगे ही. लेकिन इन सवालों के आते ही आप बहुत ही चतुराई से उपरोक्त सारी परिघटनाओं के लिए ईश्वर को नहीं बल्कि इंसान को जिम्मेदार ठहराने लगती हैं और फिर कभी इनको प्रकृति के नियम भी बताने लगाती हैं . आपके तर्कों की यही विसंगति मेरे वैज्ञानिक मन को संतुष्ट नहीं कर पायी.
एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन सारे सवालों पर सोचने पर मुझे लगता है कि युद्ध, आतंकवाद, दंगे, गरीबी, भुखमरी इत्यादि ये सभी परिघटनाएं कोई दैवीय प्रकोप नहीं बल्कि मनुष्य की आर्थिक,सामजिक और राजनीतिक संरचना की उपज है. ये संरचनाएं स्थिर नहीं हैं बल्कि मानव सभ्यता और उत्पादन शक्तियों के विकास के साथ साथ निरंतर बदलती रहती हैं. इन परिघटनाओं को ईश्वर ने नहीं रचा बल्कि इन नाइंसाफियों और अत्याचारों को सही साबित करने के लिए अलग अलग समाजों के शासक वर्गों ने ईश्वर की अवधारणा को रचा. सारी अच्छाईयां एक अनजाने अनदेखे वाह्य ईश्वर में डाल दी गयीं और बहुत ही शातिराना ढंग से मनुष्य को बुराइयों का पुतला बना दिया गया. मनुष्य की नैसर्गिक चाहतों को इस दुनिया में नहीं बल्कि किसी दूसरी दुनिया में पूरा होने का भरोसा दिलाया गया ताकि इस दुनिया के अन्याय के खिलाफ़ विद्रोह न हों. लेकिन शासक वर्गों की इच्छा से स्वतंत्र, मानव सभ्यता का इतिहास शासक और शोषक वर्गों के खिलाफ़ विद्रोहों का इतिहास रहा हैं.
२१ वीं सदी में विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि बिना शोषण के हर इंसान की बुनियादी ज़रूरतों - रोटी, कपडा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि को पूरा किया जा सकता है, लेकिन मुनाफ़े के बेतुके आधार पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था के दायरे में यह हरगिज़ संभव नहीं है. इसी वजह से हम जैसे इंसाफपसंद और तरक्कीपसंद लोग एक ऐसी सामजिक संरचना की नींव रखने की बात करते हैं और उसके लिए संघर्ष करते हैं जो शोषण पर नहीं बल्कि मानवीय ज़रूरतों के आधार पर टिकी हो. जिस स्वर्ग की तलाश आप आस्तिक लोग दूसरी दुनिया में करते हैं, हम क्रांतिकारी उसको इसी दुनिया में लाने के लिए संघर्षरत हैं. हो सकता है इसमें कई दशक या कई सदियाँ लग जाएँ लेकिन एक बात तो तय है की जब तक इस पृथ्वी पर शोषण और अत्याचार रहेगा, ये संघर्ष जारी रहेगा और शोषण व अत्याचार को दैवीय प्रकोप और प्राकृतिक नियम बताने वाले अवैज्ञानिक और घोर अमानवीय विचारों के खिलाफ़ भी, जिसकी एक अभिव्यक्ति मेरे और आपके ब्लॉग है पर जारी संघर्ष है.
yahi sawal aap se hai agar ishwar nahi hai jab aap ko pata hai to kyo aap befaltu apne dharmik mitro ko time waste karne ki salah de rahe hai ,
aapne sangh pariwar ke bare main likha pehle to bata du ki desh main desh ko azad kane walo ki sankhya 7 lakh ke aas pas thi jisme se 75% arya samaj ke the ab jab desh azad ho chuka hai to sab dharm aur jati brahmin aur hindu ke khilaf jahar ugalti hai jab ki poora adhikar hindu brahmin , rajput , aur sikho ko jata hai aur doosri baat sabse mahan muslim raja akbar ke pass 5000 hindu ladkiya haram main thi matlab rakhel doosre ki baat kya karoo ye sabse mahan the bharat desh ne kaha hai jab muslim ram sevak train jalate hai aur jehad dwara mara jata hai tan kya koi poem aapke khyal maim allah ke liye nahi hoti jab kashmiri muslim ladkiya border par rahne wale fauji ke upar rape ka jhoota iljam lagati hai tab kya kahenge aur hindu virodhi andolan main sath deti hai tab hamre congress aur sab dharm ek saman niyat wale bhool jate hai ki ye daya aur insaniyat dikhna hi hindu ke marne ka karan bani jai hind jai shri ram
A very creative and brave attempt and with some very valid questions. Very nice creation. I appreciate your work.
MAHESH ji lagta he aap kachadario ke tagde fain ho, or jab insan purvagrah se garsit ho jata he to use vahi dikhta he jo vo dekhna chahta he. ajadi ke andolan me sangh ki bhagidari ke liye aap RAM PUNIYANI ko padh sakte ho,or sangino ke saye me rahkar hi apko pata chalea ki kashmir ka matlab kya he.mane bhi bajrang dal aadi ko najdeek se dekha he unme konsi sanskriti sikhai jati he ye apko bhi pata he..baki apni akhon se kor chasam ko hatakar kuch VIGIYAN ko bhi padhiye yadi ase he ANASHva RATH par bath kar sawari karte rhe to puri umar gumrah rahoge..........
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