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Sunday, December 5, 2010

फ़ैज़ की नज़्म: हम देखेंगे


पाकिस्तान की मशहूर गायिका इक़बाल बानो ने १९८५ में ज़िया-उल-हक़ की सैनिक तानाशाही द्वारा फैज़ की नज़्मों पर लगाये गए प्रतिबन्ध के बावजूद बहुचर्चित नज़्म 'हम देखेंगे' गाया जिसको सुनने के लिए लगभग ५०,००० लोग इकठ्ठा हुए. 

हम देखेंगे
लाज़िम है के हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौहे-अज़ल पे लिखा है

जब ज़ुल्मों-सितम के कोहे-गरां
रूई की तरह उड़ जाएंगे
हम महकूमों के पांव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहले-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी

जब अर्ज़े-खुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहले-सफा मर्दूदे-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे

बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो गायब भी है, हाज़िर भी
जो मंज़र भी है, नाज़िर भी
उठ्ठेगा अनलहक़(*) का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज़ करेगी खल्क़े-खुदा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो .



We shall Witness
It is certain that we too, shall witness
the day that has been promised
of which has been written on the slate of eternity

When the enormous mountains of tyranny
will blow away like cotton.
Under our feet- the feet of the oppressed-
when the earth will pulsate deafeningly
and on the heads of our rulers
when lightning will strike.

From the abode of God
When icons of falsehood will be taken out,
When we, the righteous ones, the heretics
will be seated on high cushions
When the crowns will be tossed,
When the thrones will be brought down.

Only The name will survive
Who is invisible but is also present
Who is both the spectacle and the beholder
'I am the Truth'- the cry will rise,
Which is I, as well as you
And then God’s creation(people) will rule
Which is I, as well as you

अनलहक़ - 'मैं सत्य हूँ' , 'मैं ईश्वर हूँ'; ऐसा कहने पर इरानी सूफ़ी संत मंसूर को सरे आम सज़ा-ए-मौत दी गयी थी.

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