बचपन की धुंधली यादों में
अभी तक महफूज़ है एक धुंधली सी परिभाषा
गणतंत्र यानी एक ऐसी व्यवस्था
जहाँ सर्वोपरि होती है जनता
जहाँ सारे फ़ैसले लेती है जनता
और उनको लागू भी करती है जनता
बचपन की दहलीज़ लांघते ही
दुनियादार लोगों ने बताई एक नयी परिभाषा
चूँकि जनता है अभी तक नादान
नहीं आता उसको राजकाज चलाने का काम
इसलिये फ़ैसले लेते हैं
जनता के नुमाइंदे
जनता के नाम
और वो उनको लागू करते हैं
जनता के नाम
वक़्त बीतने के साथ उजागर हुई
इस व्यवस्था की हकीक़त
और पाया कि यहाँ जनता के नाम पर
फ़ैसले लेते हैं जनता के लुटेरे
और उनको लागू करते हैं जनता के ख़िलाफ़
गणतंत्र के मखमली परदे के पीछे छिपी है
लूटतंत्र की घिनौनी सच्चाई
धनतंत्र की नंगई और शोषणतंत्र की हैवानगी
राजपथ की परेड के शोरगुल के पीछे दबी हैं
भूख और कुपोषण के शिकार बच्चों की चीखें
रंगबिरंगी झाँकियों के पीछे गुम हैं
महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता की आहें
लेकिन मैंने यह भी जाना कि
गणतंत्र की उस धुंधली परिभाषा के पीछे था
जनता के संघर्षों और कुर्बानियों का एक लंबा इतिहास
और उसको अमली जामा पहनाने के लिये भी चाहिये
संघर्षों और कुर्बानियों का एक नया सिलसिला
अभी तक महफूज़ है एक धुंधली सी परिभाषा
गणतंत्र यानी एक ऐसी व्यवस्था
जहाँ सर्वोपरि होती है जनता
जहाँ सारे फ़ैसले लेती है जनता
और उनको लागू भी करती है जनता
बचपन की दहलीज़ लांघते ही
दुनियादार लोगों ने बताई एक नयी परिभाषा
चूँकि जनता है अभी तक नादान
नहीं आता उसको राजकाज चलाने का काम
इसलिये फ़ैसले लेते हैं
जनता के नुमाइंदे
जनता के नाम
और वो उनको लागू करते हैं
जनता के नाम
वक़्त बीतने के साथ उजागर हुई
इस व्यवस्था की हकीक़त
और पाया कि यहाँ जनता के नाम पर
फ़ैसले लेते हैं जनता के लुटेरे
और उनको लागू करते हैं जनता के ख़िलाफ़
गणतंत्र के मखमली परदे के पीछे छिपी है
लूटतंत्र की घिनौनी सच्चाई
धनतंत्र की नंगई और शोषणतंत्र की हैवानगी
राजपथ की परेड के शोरगुल के पीछे दबी हैं
भूख और कुपोषण के शिकार बच्चों की चीखें
रंगबिरंगी झाँकियों के पीछे गुम हैं
महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता की आहें
लेकिन मैंने यह भी जाना कि
गणतंत्र की उस धुंधली परिभाषा के पीछे था
जनता के संघर्षों और कुर्बानियों का एक लंबा इतिहास
और उसको अमली जामा पहनाने के लिये भी चाहिये
संघर्षों और कुर्बानियों का एक नया सिलसिला