"सबसे ख़ूबसूरत है वह समुद्र जिसे अब तक देखा नहीं हमने सबसे ख़ूबसूरत बच्चा अब तक बड़ा नहीं हुआ सबसे ख़ूबसूरत हैं वे दिन जिन्हें अभी तक जिया नहीं हमने सबसे ख़ूबसूरत हैं वे बातें जो अभी कही जानी हैं" - नाज़िम हिक़मत
मेरे दोस्तो,
हमारे समय का इतिहास
बस यही न रह जाये कि हम धीरे-धीरे मरने को ही
जीना समझ बैठें
कि हमारा समय घड़ी के साथ नहीं
हड्डियों के गलने-खपने से नापा जाए...
ग़रीबों-मजलूमों के नौजवान सपूतों! उन्हें कहने दो कि क्रान्तियाँ मर गयीं जिनका स्वर्ग है इसी व्यवस्था के भीतर. तुम्हे तो इस नर्क से बाहर निकलने के लिए बंद दरवाज़ों को तोड़ना ही होगा, आवाज़ उठानी ही होगी इस निज़ामे-कोहना के ख़िलाफ़. यदि तुम चाहते हो आज़ादी, न्याय,सच्चाई,स्वाभिमान और सुन्दरता से भरी ज़िन्दगी तो तुम्हें उठाना ही होगा नए इंक़लाब का परचम फिर से उन्हें करने दो 'इतिहास के अंत' और 'विचारधारा के अंत' की अंतहीन बकवास अन्हें पीने दो पेप्सी और कोक और थिरकने दो माइकल जैक्सन की उन्मादी धुनों पर. तुम गाओ प्रकृति की लय पर ज़िन्दगी के गीत. तुम पसीने और खून और मिट्टी और रोशनी की बातें करो. तुम बग़ावत की धुनें रचो. तुम इतिहास के रंग मंच पर एक नए महाकाव्यात्मक नाटक की तैयारी करो. तुम उठो, एक प्रबल वेगवाही प्रचण्ड झंझावात बन जाओ.
- शशि प्रकाश
प्रगतिशील एवं क्रान्तिकारी साहित्य का प्रवेश द्वार
1 comments:
ज़िंदगी के बहुत सारे संदर्भों पर सटीक है ये कविता....कि हम धीरे-धीरे मरने को ही जीना समझ बैठें
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