logo

Pages

Thursday, February 3, 2011

ज़िन्दगी और मौत



मौत का न होना ही ज़िन्दगी नहीं,
और ज़िन्दगी का न होना ही मौत नहीं,
जीते जी इंसान मर सकता है.
और मरते हुए भी इंसान ज़िन्दा रह सकता है.



अंधेरे में रहते हुए भी उजाले की उम्मीद में सार्थक प्रयास ज़िन्दगी की निशानी है,
उजाले में रहते हुए अंधेरे की नज़रंदाज़ी मौत की निशानी है.

वर्तमान उदासी के बावजूद भविष्य के प्रति उल्लास ज़िन्दगी की निशानी है,
ज़िन्दगी की उमंगों के बीच सामाजिक उदासी से विरक्ति मौत की निशानी है.

ज़ुल्म के ख़िलाफ़ जंग में सरफ़रोशी की तमन्ना ज़िन्दगी की निशानी है,
शोषकों से समझौता कर उनके सामने घुटने टेकना मौत की निशानी है

इंसानी अच्छाइयों से असीम प्यार और बुराइयों से बेइन्तेहाँ नफ़रत ज़िन्दगी की निशानी है,
अन्याय और उत्पीड़न को देखते हुए भी अनदेखा करना मौत की निशानी है.

तात्कालिक हार के बाद भी निर्णायक जंग जीतने का इरादा ज़िन्दगी की निशानी है,
भारी जीत के नशे में पैदा अहमन्यता मौत की निशानी है.

ज़मीन पर रहते हुए भी आसमान को छू लेने की ख्वाहिश ज़िन्दगी की निशानी है,
आकाश में उड़ने के बाद ज़मीन से कट जाना मौत की निशानी है.

श्रम करते हुए ज़िन्दगी जीने का तमन्ना ज़िन्दगी की निशानी है,
और ज़िन्दगी जीने की प्रक्रिया में श्रम से अलगाव मौत की निशानी है.

मरते दम तक ज़िन्दगी का एक-एक लम्हा जीने की चाहत ज़िन्दगी की निशानी है,
ज़िन्दा रहते हुए भी मौत की घड़ी का इंतज़ार मौत की निशानी है.

ज़िन्दगी और मौत में लगातार द्वन्द चलता रहता है
शायद इसीलिये इंसान रोज़-रोज़ जीता है और रोज़-रोज़ मरता है,
कभी ज़िन्दगी का पहलू प्रधान होता है तो कभी मौत का.

0 comments:

Post a Comment