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Monday, March 21, 2011

फ़ैज़ की नज़्म - सिपाही का मर्सिया

उट्ठो अब माटी से उट्ठो
जागो मेरे लाल 
अब जागो मेरे लाल 
तुम्हरी सेज सजावन कारन
देखो आई रैन अँधियारन
नीले शाल-दोशाले ले कर
जिन में इन दुखियन अँखियन ने
ढ़ेर किये हैं इतने मोती
इतने मोती जिनकी ज्योती 
दान से तुम्हरा, जगमग  लागा 
नाम चमकने. 
उट्ठो अब माटी से उट्ठो
जागो मेरे लाल 
अब जागो मेरे लाल  
घर-घर बिखरा भोर का कुन्दन 
घोर अँधेरा अपना आँगन
जाने कब से राह तके हैं
बाली दुल्हनिया बाँके वीरन
सूना तुम्हरा राज पड़ा है
देखो कितना काज पड़ा है
बैरी बिराजे राज सिंहासन
तुम माटी में लाल
उठो अब माटी से उठो,जागो मेरे लाल
हाथ  न करो माटी से उठो,जागो मेरे लाल
जागो मेरे लाल

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