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Sunday, January 16, 2011

हमारे समय का इतिहास...

मेरे दोस्तो,
हमारे समय का इतिहास
बस यही न रह जाये
कि हम  धीरे-धीरे मरने को ही
जीना समझ बैठें
कि हमारा समय
घड़ी के साथ नहीं
हड्डियों के गलने-खपने से नापा जाए...

- पाश

1 comments:

वर्षा said...

ज़िंदगी के बहुत सारे संदर्भों पर सटीक है ये कविता....कि हम धीरे-धीरे मरने को ही जीना समझ बैठें

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